Gunjan Kamal

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यादों के झरोखों से " बहुत दिनों बाद वह दिन आया था "

फुर्सत मिलते ही आज फिर से आप सभी के समक्ष उपस्थित हूॅं।  आज २०२२ के उस समय की बात आप सभी से साझा करूंगी जब बहुत दिनों बाद, यूं समझ ले कि लगभग ०१  महीने बाद नहीं .... नहीं ०२ महीने बाद मैं दीदी के साथ मार्निंग वॉक पर गई थी । हालांकि  कोहरा तो था लेकिन सुबह की ताजगी ने मेरे मन में भी नई ताजगी और स्फूर्ति का आभास  करा दिया जो इतने दिनों से मुझे मिल ही नहीं पा रहा था । इसमें किसी और की गलती नहीं बस मेरी ही  तो थी । मैं ही  तो बिस्तर में दुबकी  पड़ी रहती थी । सोचती थी बाहर बहुत ठंड होगी इसीलिए कंबल  से निकलने का मन ही नहीं करता था । नींद खुल भी जाती थी तब भी बिस्तर से बाहर निकलने की हिम्मत ही नहीं होती थी। २०२२ के जनवरी महीने की  उस सर्द शाम  में दीदी ने कहा कि सुबह मॉर्निंग वॉक पर चलना है तब मैंने उन्हें कहा कि पहले से क्या कहूँ दीदी! कल सुबह देखती हूॅं, जा पाऊंगी या नही?

  मेरे इन शब्दों के  खत्म होने से पहले ही वह हंसने लगी थी,उनकी हंसी में ना जाने क्या था? मैंने मन ही मन में उसी वक्त यह निर्णय कर लिया था  कि कल  इन्हें  उठकर दिखा ही  दूंगी, यही वजह थी कि कल रात सोने से पहले  मैंने अपने मोबाइल में अलार्म लगाया । सुबह जब ५:०० बजे अलार्म बजा तब मैंने  उन्हें  फोन किया कि मॉर्निंग वॉक पर चलना है या नहीं ? उन्होंने  कहा कि हाॅं चलो! मैं तो तैयार ही रहती हूॅं, तुम ही नहीं जाती  इसलिए मैं भी नहीं जा पाती हूॅं ।  फिर क्या था नित्य क्रिया से निवृत्त होकर  हम दोनों निकल पड़े । जैसा कि जनवरी महीने में होता ही है कि बाहर निकलने पर ठंड तो रहती ही है, उस दिन भी थी, साथ ही कोहरा  भी था। इन सबके बावजूद मुझे अच्छा भी लग रहा था । हम दोनों की तरह बहुत लोग ऐसे थे जो मॉर्निंग वॉक पर निकले थे और प्रकृति के इस मौसम की अनुपम छटा का अनुभव ले रहे थे । बहुत कुछ अच्छा लग रहा था । यहां तक कि एक - दो गाड़ियां भी चलने लगी थी । पहले तो मुझे लगा था कि हम दोनों ही शायद  पागल है जो इस ठंडी  में निकले  हैं लेकिन मैंने देखा कि बहुत से ऐसे लोग हैं जो इस ठंडी में  सुबह-सुबह निकलते हैं ।

मैं और दीदी दोनों ही पास में ही बने ऑक्सीजन पार्क में चले गए । वैसे आज तक मुझे पता था इस पार्क में जाने के लिए टिकट लगता है लेकिन आज जब हम उस तरफ से गुजरे तो गेट खुला हुआ था । एक  दिन पतिदेव जी ने भी कहा था कि सुबह - सुबह  वहां पर जाने से वें  फ्री में उस पार्क के अंदर जाने देते हैं । पार्क  का गेट खुला हुआ था तो हमने सोचा कि क्यों ना एक बार पूछ लिया जाए कि हमें अंदर जाने देंगे या नहीं ? जब हमने गेट पर बैठे आदमी से पूछा कि क्या हम अंदर जा सकते है? वह बोला तो कुछ नहीं लेकिन इशारे से कहा कि हां जा सकते हैं । फिर क्या था हम दोनों अंदर चले गए ।

आज तक तों मुझे यही मालूम था कि वहां वगैर टिकट के ऐसे किसी को भी नही जाने देते । आज से पहले एक दिन दीदी की बेटी और नाती के साथ मैं उस पार्क में गई थी । उस दिन प्रत्येक जन दस रूपए लगें थें । यही देखकर मुझे उससे पहले तक यही लगता था कि इस ऑक्सीजन पार्क में मुफ्त में नहीं जा सकते क्योंकि उसका प्रमाण मेरे पास था  लेकिन उस दिन वही प्रमाण झूठा साबित हो गया जब मैं और दीदी उस पार्क में मुफ्त में गए।

अब यह सवाल उठता है  कि यह कैसे संभव हुआ ? एक ही पार्क  में दो - दो नियम कैसे चलाए जा रहे हैं ? तो इसका यह  जवाब है कि जब मैं दीदी की बेटी के साथ उस ऑक्सीजन पार्क में गई थी तब शाम के ४:०० बज रहे थे और आज जब मैं  दीदी के साथ गई तो सुबह के ६:००  बज रहें  थे । नहीं समझे आप सब?  चलो !  समझाती  हूॅं । इस ऑक्सीजन पार्क में  सुबह के समय जो लोग जाते हैं उनको मुफ्त में इसके अंदर जाने दिया जाता है और जो लोग ९:००  बजे के बाद इस पार्क में जाते हैं उन्हें टिकट लेकर इसके अंदर प्रवेश करने दिया जाता है । मेरे समझदार पाठक! अब तो  समझ ही गए होंगे कि जिस दिन मुझे उसमें अंदर जाने के ₹ १०  लगे थे उस दिन मैं ९:००  बजे के बाद यानी कि शाम के ४:००  बजे हम गए थे  और उस सुबह मैं सुबह  के वक्त वहां पर गई थी ।

सुबह के समय वहां जाने पर उस पार्क  की सुंदरता देखकर मन एकदम से खुश हो गया था। चारों तरफ हरियाली , पेड़ - पौधे पक्षियों की चहचहाहट और  उस पार्क के अंदर बने रास्तों के बीच से गुजरते हुए हमें यह एहसास हुआ  कि हम किसी साफ-सुथरे जंगल से गुजर रहे है, एक ऐसे  जंगल से जहां हमें जंगली - जानवरों का खतरा नही था। वहां  पर हम  सभी सुरक्षित थे। हमने   उस पार्क में  सुबह के करीब डेढ़  घंटे का समय बिताया था। हम  जल्दी इसलिए भी  आ गए थे क्योंकि  बेटे को स्कूल भेजना था मुझे । पार्क से निकलते समय मैंने दीदी से वादा भी किया था  कि कल सुबह भी हम लोग इसी पार्क में आएंगे और आज से कुछ समय पूर्व आएंगे ताकि हम अच्छे से इस पूरे पार्क के मनोरम दृश्य का लुफ्त उठा सके। मेरी कोशिश तो हमेशा से यही रहती है कि मैं अपने दिए वादे को पूरा कर सकूं । ईश्वर की कृपा भी रही  मुझपर जिस कारण मेरा स्वास्थ्य भी ठीक ही रहा था और मैंने अपने वादे को पूरा भी किया था।  

यादों के झरोखों से लाई गई इस स्मृति का सफर बस यहीं तक। फुर्सत मिलते ही फिर से यादों के झरोखों की एक ऐसी ही स्मृति के साथ फिर से वापस आऊंगी, तब तक के लिए 👇

आप सभी अपना ख्याल रखना, खुश रहना और सबसे महत्वपूर्ण बात हमेशा हॅंसते- मुस्कुराते रहना 🤗🤗


                                      धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻

गुॅंजन कमल 💗💞💓


# यादों के झरोखे से प्रतियोगिता 


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11 Comments

Pranali shrivastava

10-Dec-2022 09:31 PM

शानदार

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Prbhat kumar

07-Dec-2022 11:22 AM

शानदार प्रस्तुति 👌

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Anuradha sandley

29-Nov-2022 10:16 AM

Nice

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